हमारा भारत कईं वीर सेनानियों और बहादुरों की जन्म भूमि है. यहाँ हर सदी में किसी ना किसी वीर पुत्र ने जन्म ले कर दुश्मनों का नाश किया है. इन्ही में से महाराणा प्रताप का नाम भी एक है. महाराणा प्रताप एक ऐसे महान शासक थे, जिनका नाम सुनते ही लाखों दुश्मन अपने दांतों तले उँगलियाँ दबा लेते थे. इस वीर सेनानी ने सारी जिंदगी बहादुरी के नमूने पेश किए और कभी दुश्मन फ़ौज से डर कर सिर नहीं झुकाया. आज भी महाराणा प्रताप का नाम भारतीय इतिहास के सुनहरे अक्षरों में अंकित है जो हमे निडर हो कर जीने की नई सीख देता है. इस लेख में हम आपको महाराणा प्रताप की जीवनी और उनसे जुडी कुछ रोचक जानकारियां बताने जा रहे हैं, जिनसे शायद आप पहले से वाकिफ नहीं होंगे.
प्रारंभिक जीवन- महाराणा प्रताप की जीवनी
बहदुर वीर महाराणा प्रताप का जन्म 9 मई 1540 को राजस्थान के कुम्भलगढ़ में हुआ था. मेवाड में शिशोदिया राजा वीर प्रताप के पिता का नाम राणा उदय सिंह और माता का नाम जयवंताबाई था. बचपन से महाराणा प्रताप को घर में सब कीका के नाम से बुलाते थे. अपनी जिंदगी में महाराणा प्रताप ने कुल 11 बार विवाह किया था. इन सभी शादियों में उनकी पहली पत्नी का नाम अज्ब्दे पुनवर था. इनके 17 पुत्र थे जिनमे से सबसे बड़े पुत्र का नाम अमर सिंह था. बचपन से ही महराना वीर प्रताप काफी साहसी एवं बहादुर थे. स्वाभिमान और दृढ़ता उनके खून में ही थी इसलिए वह कभी भी किसी के अधीन रह कर जीना स्वीकार नहीं करते थे.
इतिहास में लिखी किताबों के पन्नों को खोला जाए तो महाराणा प्रताप से जुड़े अनेकों किस्से हमें पढने को मिलेंगे. यह एक ऐसे राजा थे जिन्हें स्वतंत्रता से काफी प्रेम था. इसी के चलते वह मुगलों के आगे कभी नहीं झुके. इनके दृढ निश्चय और संकल्प के कारण ही बादशाह अकबर भी इनके नाम से कांपता था. अकबर ने एक बार अपने 4 दूतों को महाराणा प्रताप के घर शांति प्रस्ताव के लिए भेजा था लेकिन उन्होंने अधीनता के इस प्रस्ताव को हंस कर ठुकरा दिया था.
हल्दीघाटी का युद्ध- महाराणा प्रताप की जीवनी
वैसे तो महाराणा प्रताप की जीवनी में उनकी बहादुरी के किस्से अनेकों मिलते हैं लेकिन उनका हल्दीघाटी का युद्ध आज भी पूरे भारत के लिए एक मिसाल है जोकि उनकी वीरता और साहस में चार चाँद लगाता है. दरअसल, यह युद्ध 18 जून 1576 में हुआ था जिसमे महाराणा प्रताप का सामना मुगलों से हुआ था. इस युद्ध की खासियत यह थी कि इसमें मुगलों के पास 80000 सैनिकों की फ़ौज थी जबकि महाराणा वीर प्रताप के पास केवल 20000 ही सैनिक थे. इस युद्ध में मुगलों की सेना का संचालन जिम्मा मानसिंह और आसफ खान को सौंपा गया था जबकि मेवाड़ की सेना का संचालन खुद महाराणा वीर प्रताप कर रहे थे. महाराणा ने इस युद्ध के दौरान मुट्ठी भर सेना से 80 हज़ार सैनिकों को हरा कर मुगलों के छक्के छुड़वा दिए थे.
महाराणा प्रताप का चेतक
महाराणा प्रताप को बचपन से ही घुड़सवारी का शौंक था इसलिए उनके पिता ने उन्हें एक सफ़ेद घोडा और नीला घोडा भेंट किया था लेकिन उनके भाई की जिद्द के आगे सफ़ेद घोडा उन्हें त्यागना पड़ा और नीले घोड़े का नाम उन्होंने चेतक रखा. चेतक ने कईं युद्धों में अपनी वीरता से महाराणा प्रताप का साहस बढ़ाया.